भारतीय जनता के ईमानदार नेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय प्यार से इन्हें सब 'दीना' बुलाते थे उन्होंने मासिक पत्रिका 'राष्ट्र धर्म', 'पांचजन्य' तथा 'स्वदेश' की शुरुआत की
पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का जन्म 25 सितंबर, सन् 1916 ई. को मथुरा के छोटे से गाँव 'नगला चंद्रभान' में हुआ था। प्यार से इन्हें सब 'दीना' बुलाते थे। दीनदयाल जी के पिता का नाम भगवती प्रसाद उपाध्याय था। इनकी माता का नाम 'रामप्यारी' था। इनके पिता 'नगला चंद्रभान' के मूल निवासी थे। वे एटा में जलेसर रोड पर स्टेशन मास्टर थे। रेलवे की नौकरी के कारण इनके पिता का ज्यादातर समय बाहर बीतता था। वे अवकाश पर ही घर आ पाते थे। कुछ समय बाद दीनदयाल जी छोटे भाई का जन्म हुआ जिसका नाम 'शिवदयाल' रखा गया। दीनदयाल जी जब मात्र 3 वर्ष के थे तब इनके पिताजी का देहांत हो गया। जिसके बाद इनकी माताजी रामप्यारी क्षय रोग से पीड़ित हो गई और उनका भी निधन हो गया। इस तरह मात्र 7 वर्ष की अल्पायु में दीनदयाल जी माता-पिता के प्रेम से वंचित हो गए। सन् 1934 में इसी क्षय रोग की बीमारी से उनके छोटे भाई का देहांत हो गया था।
पढ़ाई में कुशाग्र बुद्धि, गणित प्रिय विषय
दीनदयाल जी पढ़ाई में बहुत कुशाग्र बुद्धि के थे। उनका का प्रिय विषय गणित था। वह गणित में हमेशा अधिक अंक प्राप्त करते थे। सीकर के तत्कालीन महाराज को इस मेधावी छात्र के विषय में सूचना मिली। उन्होंने एक दिन दीना को बुलाया। उन्होंने कहा, ‘'बेटा, तुमने बहुत ही अच्छे अंक प्राप्त किए हैं। बताओ, तुम्हें पुरस्कार के रूप में क्या चाहिए ?'
दीना ने बड़ी विनम्रता से उत्तर दिया, 'केवल आपका आशीर्वाद।'
महाराज छोटे दीना उत्तर से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने दीना को एक स्वर्ण पदक, पुस्तकों के लिए 250 रुपये और 10 रुपये प्रतिमाह विद्यार्थी-वेतन देकर आशीर्वाद दिया। इसके बाद दीनदयाल जी कॉलेज में पढ़ने के लिए पिलानी चले गए। वहाँ भी सभी अध्यापक उनके विनम्र स्वभाव, लगन और प्रखर बुद्धि से बड़े प्रभावित थे। पढ़ाई में पिछड़े छात्र दीनदयाल से पढ़ते थे और मार्गदर्शन पाते थे। पंडित दीनदयाल जी ने बड़ी लगन, परिश्रम और निष्ठा से हाई-स्कूल, इंटरमीडिएट तथा बी. ए. की परीक्षाएं प्रथम श्रेणी में पास करी थी।
आरएसएस से जुड़ना और पत्रकारिता की शुरुआत
सन् 1937 ई. में दीनदयाल जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) में आए और सन् 1947 ई. में यह सहप्रांत प्रचारक बने थे। दीनदयाल जी ने लखनऊ में राष्ट्र धर्म प्रकाशन नामक प्रकाशन संस्थान की स्थापना की और अपने विचारों को प्रस्तुत करने के लिए एक मासिक पत्रिका राष्ट्र धर्म शुरूआत की। थोड़े समय बाद उन्होंने 'पांचजन्य' (साप्ताहिक) तथा 'स्वदेश' (दैनिक) की शुरुआत की। इसी बीच यदा कदा समय मिलने पर इन्होने सम्राट चन्द्रगुप्त और गुरु शंकराचार्य जी के जीवन पर दो रचनाएँ लिखीं।
राजनीतिक यात्रा की शुरुआत
पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने 21 सितम्बर, सन् 1951 ई. को उत्तर प्रदेश में एक राजनीतिक सम्मेलन आयोजित किया और एक नई संगठन की इकाई 'भारतीय जनसंघ' की नींव डाली। पंडित दीनदयाल जी इसके सक्रिय कार्यकर्त्ता और डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने 21 अक्तूबर, सन् 1951 ई. को आयोजित पहले 'अखिल भारतीय सम्मेलन' की अध्यक्षता की।
सादा जीवन, उच्च विचार का जीवंत उदाहरण है दीनदयाल जी का जीवन
मुट्ठी भर चने खाकर कठोर परिश्रम करते हुए कई दिन प्रसन्नतापूर्वक बिता देना, भीगते पैदल चलना। रेल की पटरी पर रात बिना देना दीनदयाल जी की दिनचर्या थी। मात्र दो जोड़ी कपड़ों ( धोती-कुर्ता ) में ही दिन रात भ्रमण, भाषण और आगे बढ़ने की प्रेरणा देना इनकी नियति थी। समय का मूल्य वे समझते थे। उन्होंने जीवन के प्रत्येक क्षण का उपयोग किया। यही कारण है कि अल्पायु में ही वे भारतीय जनसंघ के अखिल भारतीय अध्यक्ष बन उसे सफलता और ख्याति दोनों प्राप्त करा सके।
दीनदयाल जी की मृत्यु या राजनीतिक षडयंत्र
कुशाग्र बुद्धि के धनी, स्वाभिमानी और देशभक्त पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की हत्या 51 वर्ष की आयु में 10 - 11 फरवरी, सन् 1968 ई. मुगलसराय के पास रात्रि को लखनऊ से पटना जाने वाली रेलगाड़ी में यात्रा करते समय हुई थी। दीनदयाल जी का पार्थिव शरीर मुगलसराय स्टेशन के वार्ड में पाया गया था। दीनदयाल जी की मृत्यु कई लोग एक राजनीतिक षडयंत्र मानते हैं। इस घटना के विषय में तत्कालीन सरकार ने भी कोई विशेष जांच - पड़ताल नहीं करी।
पढ़ाई में कुशाग्र बुद्धि, गणित प्रिय विषय
दीनदयाल जी पढ़ाई में बहुत कुशाग्र बुद्धि के थे। उनका का प्रिय विषय गणित था। वह गणित में हमेशा अधिक अंक प्राप्त करते थे। सीकर के तत्कालीन महाराज को इस मेधावी छात्र के विषय में सूचना मिली। उन्होंने एक दिन दीना को बुलाया। उन्होंने कहा, ‘'बेटा, तुमने बहुत ही अच्छे अंक प्राप्त किए हैं। बताओ, तुम्हें पुरस्कार के रूप में क्या चाहिए ?'
दीना ने बड़ी विनम्रता से उत्तर दिया, 'केवल आपका आशीर्वाद।'
महाराज छोटे दीना उत्तर से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने दीना को एक स्वर्ण पदक, पुस्तकों के लिए 250 रुपये और 10 रुपये प्रतिमाह विद्यार्थी-वेतन देकर आशीर्वाद दिया। इसके बाद दीनदयाल जी कॉलेज में पढ़ने के लिए पिलानी चले गए। वहाँ भी सभी अध्यापक उनके विनम्र स्वभाव, लगन और प्रखर बुद्धि से बड़े प्रभावित थे। पढ़ाई में पिछड़े छात्र दीनदयाल से पढ़ते थे और मार्गदर्शन पाते थे। पंडित दीनदयाल जी ने बड़ी लगन, परिश्रम और निष्ठा से हाई-स्कूल, इंटरमीडिएट तथा बी. ए. की परीक्षाएं प्रथम श्रेणी में पास करी थी।
आरएसएस से जुड़ना और पत्रकारिता की शुरुआत
सन् 1937 ई. में दीनदयाल जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) में आए और सन् 1947 ई. में यह सहप्रांत प्रचारक बने थे। दीनदयाल जी ने लखनऊ में राष्ट्र धर्म प्रकाशन नामक प्रकाशन संस्थान की स्थापना की और अपने विचारों को प्रस्तुत करने के लिए एक मासिक पत्रिका राष्ट्र धर्म शुरूआत की। थोड़े समय बाद उन्होंने 'पांचजन्य' (साप्ताहिक) तथा 'स्वदेश' (दैनिक) की शुरुआत की। इसी बीच यदा कदा समय मिलने पर इन्होने सम्राट चन्द्रगुप्त और गुरु शंकराचार्य जी के जीवन पर दो रचनाएँ लिखीं।
राजनीतिक यात्रा की शुरुआत
पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने 21 सितम्बर, सन् 1951 ई. को उत्तर प्रदेश में एक राजनीतिक सम्मेलन आयोजित किया और एक नई संगठन की इकाई 'भारतीय जनसंघ' की नींव डाली। पंडित दीनदयाल जी इसके सक्रिय कार्यकर्त्ता और डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने 21 अक्तूबर, सन् 1951 ई. को आयोजित पहले 'अखिल भारतीय सम्मेलन' की अध्यक्षता की।
सादा जीवन, उच्च विचार का जीवंत उदाहरण है दीनदयाल जी का जीवन
मुट्ठी भर चने खाकर कठोर परिश्रम करते हुए कई दिन प्रसन्नतापूर्वक बिता देना, भीगते पैदल चलना। रेल की पटरी पर रात बिना देना दीनदयाल जी की दिनचर्या थी। मात्र दो जोड़ी कपड़ों ( धोती-कुर्ता ) में ही दिन रात भ्रमण, भाषण और आगे बढ़ने की प्रेरणा देना इनकी नियति थी। समय का मूल्य वे समझते थे। उन्होंने जीवन के प्रत्येक क्षण का उपयोग किया। यही कारण है कि अल्पायु में ही वे भारतीय जनसंघ के अखिल भारतीय अध्यक्ष बन उसे सफलता और ख्याति दोनों प्राप्त करा सके।
दीनदयाल जी की मृत्यु या राजनीतिक षडयंत्र
कुशाग्र बुद्धि के धनी, स्वाभिमानी और देशभक्त पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की हत्या 51 वर्ष की आयु में 10 - 11 फरवरी, सन् 1968 ई. मुगलसराय के पास रात्रि को लखनऊ से पटना जाने वाली रेलगाड़ी में यात्रा करते समय हुई थी। दीनदयाल जी का पार्थिव शरीर मुगलसराय स्टेशन के वार्ड में पाया गया था। दीनदयाल जी की मृत्यु कई लोग एक राजनीतिक षडयंत्र मानते हैं। इस घटना के विषय में तत्कालीन सरकार ने भी कोई विशेष जांच - पड़ताल नहीं करी।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन श्रद्धांजलि - जसदेव सिंह जी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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